देखा जो झांकती हुई किरणों को
कालिमा लदे बादलों के पीछे से ,
भेदती हुई निकलती आती रौशनी
तरलता भरती जा रही थी मुझमें ,
अँधेरा तो तभी तक है
जब तक रौशनी नहीं -
कोई पुरानी-सी , सीखी हुई बात तैर गई ज़हन में
और दिन हो गया उस पल !!!
बचपन का भोलापन भी बेहद प्यारा है -
लगा था चलना सीख लिया ,
पर वो तो गिर कर खड़े होने का अभ्यास भर था !!!
तो लो,
फिर से उठी और चल पड़ी मैं :)
थपेड़े तो लगेंगे ही और गिरना भी तय है -
रास्ते हैं ही इतने उबड़ - खाबड़ और घुमावदार !!
पर उस मालिक की महर से
हरे - भरे पेड़ फैला देते मुझ पर ठंडी छाँव ,
अपनी आवाज़ से ज़िन्दगी में मिठास घोलते पंछी
और रंग बिखेरते फूल !!
रोज़ सुबह एक नए दिन की शुरुआत
और सामने वो अभी ख़त्म न हुआ रास्ता ,
फिर से उठ कर चलने की हिम्मत देता है !!!
उस प्यारे शरारती बचपन की यादें -
तैरते हुए बुलबुलों को पकड़ना ,
उँगली लगते ही फूट जाते थे जो !
फूँक से उड़ाना,
वो बुढ़िया के बाल !
बहुत सारे दोस्तों के साथ ,
बहुत सारा खेलना !
फ़िर रात क्यों हो गई ?
बहुत गुस्सा आना !!
कितना आसान था
कट्टी और मिट्ठी कर लेना
नाराज़गी अरसे तक बोझ बनकर नहीं रहती थी ,
भूल जाने में न कोई तकलीफ
ना ही सच बोलने में कोई प्रयास !
सुबह-सुबह क्या एहसास हुआ !!!!
हवा में कुछ अलग ही ताजगी थी
और उगते हुए सूरज में कुछ अलग ही चमक
सिन्दूरी से सुनहरी होता हुआ रंग
और उस पर हरियाले तोतों का आसमान पर झुंड में तैर जाना
पत्तों के हिलने का अंदाज़ हवा को आकार देता हुआ ,
सूरज की गर्मी भरी छुअन पाते ही फूलों का ऑंखें खोल देना
अकेले होने पर भी अकेलेपन की बजाये
इन सबका संग-साथ महसूस करना
प्रकृति ही सबसे प्यारा दोस्त
और सबसे असरदार मरहम है !!!
ऊबड़-खाबड़ ये रास्ता -
मेरे दिल और दिमाग के बीच
गाड़ी चलते-चलते जवाब दे जाती है कभी-कभार !
चरमराने लगता है ढांचा
और झटके भरे हिचकोलों से दिमाग होने लगता है सुन्न !
मरम्मत के लिए अर्जी लगाती हूँ
इस गाड़ी के बनाने वाले को हर बार ,
पर ये समझ में आया है
कि सिर्फ़ गाड़ी की मरम्मत नहीं है काफ़ी ,
इस रास्ते को समतल करना है असली हल !!
बालकनी से दिखता
वो सामने वाला पेड़
हर पल है उस पर आवा-जाही !
सूरज की पहली किरण के साथ ही
अलग-अलग सुरों की सरगम -
कभी कूके कोयल
तो कभी कौवे की कांव-कांव
गिलहरियाँ धमा-चौकड़ी मचाती हैं
एक डाल से दूसरी पर !!
मुसाफिर पंछी
करते हैं कुछ पल विश्राम
और जिनका है बसेरा यहाँ
वो देखा करते हैं ये तमाशा बेपरवाह -
रोज़ की ही तो बात है !!!!
भोर का ठंडा शांत प्रहर -
समय का स्पंदन रुक गया हो जैसे
पर आकाश देता है पल-पल रंग बदल कर गवाही
कि समय है गतिमान हमेशा !
जाती हुई रात और आता हुआ सवेरा -
है कुदरत का सबसे सुंदर कैनवास !
कुहासे की उस हलकी सी पर्त को
अपने में समा लेता है प्रभात
और ओस जड़े फूलों को जगाता है
अपने गर्माहट भरे स्पर्श से सूरज
यह अनूठा बदलाव चित्त को कर देता है शांत
और मन को भर देता है एक सुखद अनुभूति से !!!