Wednesday, November 4, 2009

देखा जो झांकती हुई किरणों को

कालिमा लदे बादलों के पीछे से ,

भेदती हुई निकलती आती रौशनी

तरलता भरती जा रही थी मुझमें ,

अँधेरा तो तभी तक है

जब तक रौशनी नहीं -

कोई पुरानी-सी , सीखी हुई बात तैर गई ज़हन में

और दिन हो गया उस पल !!!

Thursday, September 17, 2009

धागा है यह प्रेम का ,

नाज़ुक पर कमज़ोर नहीं !!

ऊंची-ऊंची हैं चट्टानें ,

पर झरना है - रुकता तो नहीं !!

उम्मीदों का दामन पकड़ा ,

हँसना है रोना तो नहीं !!

रोना ,गिरना ,थमना, रुकना ,

पड़ाव हैं ये ठहराव नहीं !!

जीवन हमको रोज़ सिखाता ,

परखता तो है पर दोस्त यही !!

Saturday, September 5, 2009

दिन ने खोली,

अपनी झोली -

लगा बाँटने बेरोकटोक !!

भर-भर बांटे

रौशन कोने ,

चमचमाते छत- गलियारे

और दमकते घर-चौबारे !!!

दिए चिड़ियों को ,

सिंके हुए दाने

और तितलियों को

फूल खोल के !!!!

दे दिया आगाज़ मुझे

और भर दिया मुझमे दम-ख़म;

रख कर सर पर

स्नेह की गर्माहट भरा हाथ !!!

Thursday, August 27, 2009

पाषाण टूटे ,

झरने फूटे

हो गया मन तरल !

सूखी क्यारियाँ ,

भर गयीं फूलों से

खुशबू और रंगों की है चहल-पहल !

पथरीले रास्तों पे ,

उग आई है मुलायम दूब

ज़िन्दगी ने की है पहल !

सवालों को नहीं रही ,

जवाबों की तलब

नए आयाम में आई हूँ मैं टहल !

Monday, August 10, 2009

बह चले पत्ते ,

उड़ चला मन -

कहीं भी, कैसे भी !!

घिरती आ रही बदली

भरती जा रही अन्तर में ,

गीली मिट्टी का सोंधा एहसास -

जैसे प्यार की छुअन पोर-पोर में !!

मदमस्त झोंकों से लहराते पेड़ ,

कोयल की कूक से गूंजता आसमान !!

चित्त हो गया पंख सा हल्का ,

जो भर ली अपने अन्दर

ऐसी सुखद शाम !!!!

Sunday, August 9, 2009

कल रात -

शायद झगडा हो गया था

चाँद और उसके करीबी तारे के बीच

परे - परे थे दोनों एक दूसरे से !

और तो और ,

मुंह फेरा हुआ था चाँद ने अपना

कुछ कुम्हलाया सा !!!

तारा अपनी न जाने किस ऐंठ में

ऊंचा चढ़ा कुछ ज़्यादा ही चमक रहा था

मैं दोनों को अकेला छोड़ आई -

मनमुटाव बड़े पर्सनल होते हैं !!

Thursday, July 16, 2009

बचपन का भोलापन भी बेहद प्यारा है -

लगा था चलना सीख लिया ,

पर वो तो गिर कर खड़े होने का अभ्यास भर था !!!


तो लो,

फिर से उठी और चल पड़ी मैं :)

थपेड़े तो लगेंगे ही और गिरना भी तय है -

रास्ते हैं ही इतने उबड़ - खाबड़ और घुमावदार !!

पर उस मालिक की महर से

हरे - भरे पेड़ फैला देते मुझ पर ठंडी छाँव ,

अपनी आवाज़ से ज़िन्दगी में मिठास घोलते पंछी

और रंग बिखेरते फूल !!

रोज़ सुबह एक नए दिन की शुरुआत

और सामने वो अभी ख़त्म न हुआ रास्ता ,

फिर से उठ कर चलने की हिम्मत देता है !!!




Tuesday, June 23, 2009


शाम को छत पर पहुँची


तो देखा -


वो मस्तमौला चितेरा


इन्द्रधनुष को आधा-अधूरा छोड़ कर


जाने कहाँ चला गया था !!


कोयल बेतहाशा कूके जाए उसे बुलाने को


पंछियों के झुंड ढूंढें इधर से उधर !!


मैंने भी देखा चारों ओर -


पर वो दूर ढलते सूरज के साथ जा चुका था


सबकी पंहुच से बाहर -


आख़िर है तो वो मालिक !!!!


Thursday, June 18, 2009

सुबह-सुबह दरवाजा खोलते ही

उड़ेल दी सूरज ने मुझ पे रौशनी !!

प्यार से ठोकी धूप ने मेरी पीठ और कहा

चल पड़ - दिन निकल आया है !!

साथी की तरह हौले-हौले

मेरे कानों में स्वर लहरी घोलती

साथ में बह चली मंद हवा !!

लौटते में रात बहुत हो चली थी

तभी तो चाँद घर तक छोड़ने चला आया !!

सच्चे साथी ही ज़िन्दगी की वजह हैं !!

Thursday, May 14, 2009

उस प्यारे शरारती बचपन की यादें -

तैरते हुए बुलबुलों को पकड़ना ,

उँगली लगते ही फूट जाते थे जो !

फूँक से उड़ाना,

वो बुढ़िया के बाल !

बहुत सारे दोस्तों के साथ ,

बहुत सारा खेलना !

फ़िर रात क्यों हो गई ?

बहुत गुस्सा आना !!

कितना आसान था

कट्टी और मिट्ठी कर लेना

नाराज़गी अरसे तक बोझ बनकर नहीं रहती थी ,

भूल जाने में न कोई तकलीफ

ना ही सच बोलने में कोई प्रयास !

Sunday, May 10, 2009

कल रात आंखें मूंदते ही

चल पड़ी मैं अनजान रास्तों पर -

बहते-उड़ते ,

कभी घुप्प अंधेरों में ;

तो कभी चमकदार रौशनी में !

मिलते-मिलाते ,

साथ छोड़ चुके लोगों से

और पूरा करते वो सब काम ,

जो दिन में छूट गए !!

कब भोर ने मुझे थपथपाया

पता ही नहीं चला !!!!

Thursday, May 7, 2009

तुम्हारे चंद शब्द -

अचानक बरसीं ये नन्ही-नन्ही बूँदें !

ठंडक भर गई अंतर में !!

कोयल की कूक सी भली लगती,

दूरी को पाटती,

तुम्हारी आवाज़ की मुस्कान!

मेरे दोस्त,

ज्यों सामने खड़े हो तुम-

गले लगाने को जी चाहा !!!

Thursday, April 23, 2009

दिन उठा और निकल पड़ा अपने रास्ते

हमराही कोई हो या नहीं !

कलियाँ खिल गयीं और झूम गई डाली

जलतरंग बजी हो या नहीं !

सांझ उतरती आ गई आँगन में

दीये जलाये हों या नहीं !

रात ने फैलाई अपनी तारों भरी लोई

सुकून भरी नींद हम ओढ़ पाए हों या नहीं !

हर पल है आस और हर साँस है सुकून

हम महसूस कर पाए हों या नहीं !

Wednesday, April 15, 2009

कल रात ,

चाँद अकेला टहल रहा था आसमान में

कुछ धूमिल और अनमना सा

छितरे-बिखरे कुछ बादलों के पीछे

बार-बार झाँक कर देखता

पूछा तो बोला -

ढूंढते-ढूंढते थक गया हूँ

अपने दोस्तों-यारों ,

साथी सितारों को

बहुत चिढ़ाते हैं मुझे कभी-कभी ये सब मिलके !!

Saturday, April 4, 2009

दुधवा के जंगलों में

पेड़ों में से छन के आती सुबह की धूप

और वहीं खड़ा एक चित्तीदार हिरण

सुनहरी आभा हिरण से धूप को जाती

या धूप से हिरण में समाती ???

निश्चल खड़ी -

आंखों से दिमाग की कटोरी में उड़ेल रही हूँ

अपने प्राणों की तरावट का यह अमृत -पान !

कौंध जाता है बस एक ख़्याल

सीता ने क्या यही हिरण देखा था ?

Tuesday, March 17, 2009

पहाड़ों की रात -

आसमान के तारे कुछ ज़्यादा ही बड़े और करीब दिखते

और चाँद कुछ ज्यादा ही दूध-मलाई खा के आया लगता !

ढलानों पर बने मकानों में झिलमिलाती रौशनी

जैसे चारों तरफ़ विशालकाय

क्रिसमस के चमकदार पेड़ सजे हों !

रात में घाटी का सौन्दर्य

किसी परी-कथा के जादू को

सजीव कर देता है !!

Sunday, March 8, 2009

सुबह-सुबह क्या एहसास हुआ !!!!

हवा में कुछ अलग ही ताजगी थी

और उगते हुए सूरज में कुछ अलग ही चमक

सिन्दूरी से सुनहरी होता हुआ रंग

और उस पर हरियाले तोतों का आसमान पर झुंड में तैर जाना

पत्तों के हिलने का अंदाज़ हवा को आकार देता हुआ ,

सूरज की गर्मी भरी छुअन पाते ही फूलों का ऑंखें खोल देना

अकेले होने पर भी अकेलेपन की बजाये

इन सबका संग-साथ महसूस करना

प्रकृति ही सबसे प्यारा दोस्त

और सबसे असरदार मरहम है !!!

Wednesday, February 25, 2009

चल रही थी मैं

मसूरी की घुमावदार सड़क पर ,

नीचे उतर आए

हल्के-फुल्के बादल मेरा साथ देने ,

हल्की सी ठंड ने लपेट लिया मुझे

और फिर जब तैर गए ऊपर वो सब

तो प्यार भरी फुहार

से भिगो गए तन-मन को ,

रोमांचित और पुलकित कर गया मुझे

इतना बेझिझक प्यार और अपनेपन का इज़हार !

Tuesday, February 10, 2009

निकल आई एक पुरानी किताब !



पन्ने पलटते हुए , कहानी के साथ



फिर से ताज़ा हो गयीं वो यादें



"सिर्फ़ तुम्हारे लिए " -



लिखा था पहले पन्ने पर



पढ़ कर आज भी




एक मुलायम एहसास से भर गया मन !




चाहत जीने का एक सुंदर सबब है !!




Monday, February 9, 2009






रंगत उसकी भूरी- सुनहरी

कान हैं लंबे, दुम है छोटी

साथी मेरा हरदम हरपल

मेरे संग वो देता है चल

गेंद है उसको बहुत ही प्यारी

हिन्दी समझ में आती सारी

गाय से है बेहद नाराजगी

खुन्नस है कुछ खामखा की

प्यार नहीं शर्तों पे जिसका

जग्गू बंग्लुरिया नाम है उसका !






















Thursday, February 5, 2009

ओस की बूँदें -

ज्यों बेतरतीब बिखरे हों नायाब हीरे !

रत्न-जड़ित पेड़ पौधों से स्वागत करती है

प्रकृति हर नए दिन का -

अपनी पवित्र और स्वच्छ आभा बिखेरते हुए !

सबसे सुंदर फूल से लेकर ,

एक नन्हे त्रण तक

उसका श्रृंगार है पूर्ण !

है तो क्षणिक -

पर इससे बेशकीमती कुछ भी नहीं !!

Friday, January 30, 2009

देखो , आया है चाँद

भरपूर चमकता , मुस्कराहट लिए चेहरे पे

प्यार से लबरेज़ !

रात जितनी हो काली

उतना ही चमचमाता , सबकी नज़रों के सामने

प्यार है ही ऐसा -

बेहद खूबसूरत और निडर !!

ढकने दबाने की कोशिश है फिजूल

और उसकी चमक को मैला करने की कोशिश है पागलपन !

Wednesday, January 28, 2009

धूप ने दी आज

नए मौसम के आने की ख़बर !

मन हो उठा है तरंगित

और हल्का होने का एहसास है पोर-पोर में

बातें चलने लगती हैं फिर

लस्सी, ठंडाई और शर्बत की -

कुछ हल्के सूती कुर्तों की ......

तमाम नए फूलों की

और पेड़ों की ठंडी छाँव की

कुछ फालसे और कच्चे अमरुद -

और रस भरे तरबूज

नए की दस्तक और बदलाव का स्वागत है !


Tuesday, January 20, 2009

ऊबड़-खाबड़ ये रास्ता -

मेरे दिल और दिमाग के बीच

गाड़ी चलते-चलते जवाब दे जाती है कभी-कभार !

चरमराने लगता है ढांचा

और झटके भरे हिचकोलों से दिमाग होने लगता है सुन्न !

मरम्मत के लिए अर्जी लगाती हूँ

इस गाड़ी के बनाने वाले को हर बार ,

पर ये समझ में आया है

कि सिर्फ़ गाड़ी की मरम्मत नहीं है काफ़ी ,

इस रास्ते को समतल करना है असली हल !!

Monday, January 19, 2009

सेज सजी है ,

राह खड़ी है

चलते जाना .....

तन कंपता है,

मन डिगता है

चलते जाना ....

जलन धूप में ,

ठिठुरन काफ़ी

चलते जाना .....

शंकाजाल हैं ,

प्रश्न हैं भारी

चलते जाना ....

साथ न कोई ,

पर सच है साथी

चलते जाना .....

Saturday, January 17, 2009

बालकनी से दिखता


वो सामने वाला पेड़


हर पल है उस पर आवा-जाही !


सूरज की पहली किरण के साथ ही


अलग-अलग सुरों की सरगम -


कभी कूके कोयल


तो कभी कौवे की कांव-कांव


गिलहरियाँ धमा-चौकड़ी मचाती हैं


एक डाल से दूसरी पर !!


मुसाफिर पंछी


करते हैं कुछ पल विश्राम


और जिनका है बसेरा यहाँ


वो देखा करते हैं ये तमाशा बेपरवाह -


रोज़ की ही तो बात है !!!!

Monday, January 12, 2009

रात ने फैलाई

अपनी नर्म मुलायम लोई ,

उसकी सुकून भरी ओढ़नी के आगोश में हैं सब आमंत्रित !

जो रात काटनी हो मुश्किल

तो है चाँद साथी ,

वरना है एक सितारा

ज्यों डूबते को तिनके का सहारा !!!

सांझ उतरती आ गई आँगन में

झनकाती अपनी तारों भरी पाजेब

इतनी सांवली सलोनी और दमकती

कि दिए जल उठे कोने-कोने में

उसके स्वागत के लिए !!

Sunday, January 11, 2009

पहाडों की दुपहर

और धूप के संग

वो लुका-छिपी का खेल !

मेरे पीछे आने पर

एक पहाड़ से दूसरे पर तेज़ी से दौड़ जाना

पेड़ों की टहनियों में से झांकना

पर हाथ न आना

और हवा में तैरते हुए

रोम-रोम में गर्माहट भर जाना !!

Friday, January 9, 2009

भोर का ठंडा शांत प्रहर -

समय का स्पंदन रुक गया हो जैसे

पर आकाश देता है पल-पल रंग बदल कर गवाही

कि समय है गतिमान हमेशा !

जाती हुई रात और आता हुआ सवेरा -

है कुदरत का सबसे सुंदर कैनवास !

कुहासे की उस हलकी सी पर्त को

अपने में समा लेता है प्रभात

और ओस जड़े फूलों को जगाता है

अपने गर्माहट भरे स्पर्श से सूरज

यह अनूठा बदलाव चित्त को कर देता है शांत

और मन को भर देता है एक सुखद अनुभूति से !!!