Tuesday, January 20, 2009

ऊबड़-खाबड़ ये रास्ता -

मेरे दिल और दिमाग के बीच

गाड़ी चलते-चलते जवाब दे जाती है कभी-कभार !

चरमराने लगता है ढांचा

और झटके भरे हिचकोलों से दिमाग होने लगता है सुन्न !

मरम्मत के लिए अर्जी लगाती हूँ

इस गाड़ी के बनाने वाले को हर बार ,

पर ये समझ में आया है

कि सिर्फ़ गाड़ी की मरम्मत नहीं है काफ़ी ,

इस रास्ते को समतल करना है असली हल !!

6 comments:

chopal said...

मरम्मत के लिए अर्जी लगाती हूँ

इस गाड़ी के बनाने वाले को हर बार ,

पर ये समझ में आया है

कि सिर्फ़ गाड़ी की मरम्मत नहीं है काफ़ी ,

इस रास्ते को समतल करना है असली हल !!
bahut badia...

Vinay said...

सच बहुत सुन्दरता के साथ मनोभाव प्रकट किये हैं आपने

---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम

Anonymous said...

बहुत गहरे अर्थ हैं इन पंक्तियोंं के पीछे

के सी said...

sundar hai pasand aayi

daanish said...

"सिर्फ़ गाड़ी की मरम्मत नही है काफ़ी ,
इस रास्ते को समतल करना है ..."

जीवन-दर्शन को बहोत ही सादगी से समझाने की सफल कोशिश की है
इस सुंदर कविता के माध्यम से आपने ....
बड़ी ही सूझ-बूझ और गहरी विवेकशीलता से लिखी है आपने ये कविता
बधाई स्वीकार करें ............
---मुफलिस---

rajesh singh kshatri said...

कि सिर्फ़ गाड़ी की मरम्मत नहीं है काफ़ी ,

इस रास्ते को समतल करना है असली हल !!
बहुत सुन्दर...