मेरा सफ़र
बहुत आँख मली
पानी से धोई भी बहुत
पर फ्यूज़ हो गया
बल्ब एक -
लपझप करते एक दिन !
शब्दों की क़तार
सहानुभूति जताने का
मक़सद कहके.....
अबूझ रही
सक्षम लोगों के समक्ष भी
बस कुछ मलहम और दवा के
फाहों से बना अस्थाई काम ।
दुबारा दस्तक दी
उसी अस्वस्थता ने
और वही बल्ब फयूज़ हो गया
फिर से !!
शुरु हुई वहाँ से
एक लंबी क़वायद
घर से हॉस्पिटल
और हॉस्पिटल से घर की ......
इन गुज़रते सालों में नौ हमले -
हर हमला जैसे
एक ग़ुस्सैल झुंड,
जिसने अस्थिर कर दिये
घर के स्तंभ !!!
मरम्मत आसान न थी
पर कराई हर बार ।
छूट गये फिर भी
कुछ दरारों के निशान .....
जंग का कुछ हर्ज़ाना
तो भरना पड़ता है न ।
अंधेरी सुरंग में
रौशनी दिखी कुछ शब्दों से
इन शब्दों ने मिलवाया ,
एक मार्गदर्शक से
जिसने दिखाया रास्ता ....
उस गढ्ढे से बाहर आने का
और सिखाया
जीने का स्वस्थ तरीक़ा :)
जंग जारी रहेगी -
बदल गया है
बस उससे जूझने का तरीक़ा
जो है बेहद कारगर !!
आज शक्ति और दम है मुझमें ...
पूर्ण विश्वास भी
कि मैं अब
ख़ैरियत से हूँ !!