दिन उठा और निकल पड़ा अपने रास्ते
हमराही कोई हो या नहीं !
कलियाँ खिल गयीं और झूम गई डाली
जलतरंग बजी हो या नहीं !
सांझ उतरती आ गई आँगन में
दीये जलाये हों या नहीं !
रात ने फैलाई अपनी तारों भरी लोई
सुकून भरी नींद हम ओढ़ पाए हों या नहीं !
हर पल है आस और हर साँस है सुकून
हम महसूस कर पाए हों या नहीं !