पाषाण टूटे ,
झरने फूटे
हो गया मन तरल !
सूखी क्यारियाँ ,
भर गयीं फूलों से
खुशबू और रंगों की है चहल-पहल !
पथरीले रास्तों पे ,
उग आई है मुलायम दूब
ज़िन्दगी ने की है पहल !
सवालों को नहीं रही ,
जवाबों की तलब
नए आयाम में आई हूँ मैं टहल !
बह चले पत्ते ,
उड़ चला मन -
कहीं भी, कैसे भी !!
घिरती आ रही बदली
भरती जा रही अन्तर में ,
गीली मिट्टी का सोंधा एहसास -
जैसे प्यार की छुअन पोर-पोर में !!
मदमस्त झोंकों से लहराते पेड़ ,
कोयल की कूक से गूंजता आसमान !!
चित्त हो गया पंख सा हल्का ,
जो भर ली अपने अन्दर
ऐसी सुखद शाम !!!!
कल रात -
शायद झगडा हो गया था
चाँद और उसके करीबी तारे के बीच
परे - परे थे दोनों एक दूसरे से !
और तो और ,
मुंह फेरा हुआ था चाँद ने अपना
कुछ कुम्हलाया सा !!!
तारा अपनी न जाने किस ऐंठ में
ऊंचा चढ़ा कुछ ज़्यादा ही चमक रहा था
मैं दोनों को अकेला छोड़ आई -
मनमुटाव बड़े पर्सनल होते हैं !!