Thursday, July 16, 2009

बचपन का भोलापन भी बेहद प्यारा है -

लगा था चलना सीख लिया ,

पर वो तो गिर कर खड़े होने का अभ्यास भर था !!!


तो लो,

फिर से उठी और चल पड़ी मैं :)

थपेड़े तो लगेंगे ही और गिरना भी तय है -

रास्ते हैं ही इतने उबड़ - खाबड़ और घुमावदार !!

पर उस मालिक की महर से

हरे - भरे पेड़ फैला देते मुझ पर ठंडी छाँव ,

अपनी आवाज़ से ज़िन्दगी में मिठास घोलते पंछी

और रंग बिखेरते फूल !!

रोज़ सुबह एक नए दिन की शुरुआत

और सामने वो अभी ख़त्म न हुआ रास्ता ,

फिर से उठ कर चलने की हिम्मत देता है !!!