बचपन का भोलापन भी बेहद प्यारा है -
लगा था चलना सीख लिया ,
पर वो तो गिर कर खड़े होने का अभ्यास भर था !!!
तो लो,
फिर से उठी और चल पड़ी मैं :)
थपेड़े तो लगेंगे ही और गिरना भी तय है -
रास्ते हैं ही इतने उबड़ - खाबड़ और घुमावदार !!
पर उस मालिक की महर से
हरे - भरे पेड़ फैला देते मुझ पर ठंडी छाँव ,
अपनी आवाज़ से ज़िन्दगी में मिठास घोलते पंछी
और रंग बिखेरते फूल !!
रोज़ सुबह एक नए दिन की शुरुआत
और सामने वो अभी ख़त्म न हुआ रास्ता ,
फिर से उठ कर चलने की हिम्मत देता है !!!