और वो चलती गई....
रस्साकशी समाजों की
कश्मकश ख़यालों की
और वो चलती गई.......
बेढब समय
बदतर हालात
और वो चलती गई.......
हँसने रोने का कार्यक्रम
गिरने उठने की प्रक्रिया
और वो चलती गई.......
ढकेलते ठेलते नुकीले मोड़
लेकिन पुकारते परवाज़
और वो चलती गई........
Thursday, November 16, 2017
Saturday, March 11, 2017
पुरवाई
पगडंडियों के किनारे चलती हुई
सँभल -सँभल कर !
अभी - अभी ही तो
चमकती नदी पर
बहती आई है !
मंदिर की घंटियों के बाद
बगिया के फूलों को जगाती
फिर तितलियों के साथ
पकड़म - पकड़ाई खेलती !!
दोपहर की धूप में
ज़रा ठहर लेगी किसी पेड़ तले,
साँझ की ठंडक सबको पहुँचा कर,
फिर रात काटेगी -
चाँद को ताकते
किसी टीले पर से !!
पगडंडियों के किनारे चलती हुई
सँभल -सँभल कर !
अभी - अभी ही तो
चमकती नदी पर
बहती आई है !
मंदिर की घंटियों के बाद
बगिया के फूलों को जगाती
फिर तितलियों के साथ
पकड़म - पकड़ाई खेलती !!
दोपहर की धूप में
ज़रा ठहर लेगी किसी पेड़ तले,
साँझ की ठंडक सबको पहुँचा कर,
फिर रात काटेगी -
चाँद को ताकते
किसी टीले पर से !!
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