Tuesday, June 23, 2009


शाम को छत पर पहुँची


तो देखा -


वो मस्तमौला चितेरा


इन्द्रधनुष को आधा-अधूरा छोड़ कर


जाने कहाँ चला गया था !!


कोयल बेतहाशा कूके जाए उसे बुलाने को


पंछियों के झुंड ढूंढें इधर से उधर !!


मैंने भी देखा चारों ओर -


पर वो दूर ढलते सूरज के साथ जा चुका था


सबकी पंहुच से बाहर -


आख़िर है तो वो मालिक !!!!


Thursday, June 18, 2009

सुबह-सुबह दरवाजा खोलते ही

उड़ेल दी सूरज ने मुझ पे रौशनी !!

प्यार से ठोकी धूप ने मेरी पीठ और कहा

चल पड़ - दिन निकल आया है !!

साथी की तरह हौले-हौले

मेरे कानों में स्वर लहरी घोलती

साथ में बह चली मंद हवा !!

लौटते में रात बहुत हो चली थी

तभी तो चाँद घर तक छोड़ने चला आया !!

सच्चे साथी ही ज़िन्दगी की वजह हैं !!