Friday, January 30, 2009

देखो , आया है चाँद

भरपूर चमकता , मुस्कराहट लिए चेहरे पे

प्यार से लबरेज़ !

रात जितनी हो काली

उतना ही चमचमाता , सबकी नज़रों के सामने

प्यार है ही ऐसा -

बेहद खूबसूरत और निडर !!

ढकने दबाने की कोशिश है फिजूल

और उसकी चमक को मैला करने की कोशिश है पागलपन !

Wednesday, January 28, 2009

धूप ने दी आज

नए मौसम के आने की ख़बर !

मन हो उठा है तरंगित

और हल्का होने का एहसास है पोर-पोर में

बातें चलने लगती हैं फिर

लस्सी, ठंडाई और शर्बत की -

कुछ हल्के सूती कुर्तों की ......

तमाम नए फूलों की

और पेड़ों की ठंडी छाँव की

कुछ फालसे और कच्चे अमरुद -

और रस भरे तरबूज

नए की दस्तक और बदलाव का स्वागत है !


Tuesday, January 20, 2009

ऊबड़-खाबड़ ये रास्ता -

मेरे दिल और दिमाग के बीच

गाड़ी चलते-चलते जवाब दे जाती है कभी-कभार !

चरमराने लगता है ढांचा

और झटके भरे हिचकोलों से दिमाग होने लगता है सुन्न !

मरम्मत के लिए अर्जी लगाती हूँ

इस गाड़ी के बनाने वाले को हर बार ,

पर ये समझ में आया है

कि सिर्फ़ गाड़ी की मरम्मत नहीं है काफ़ी ,

इस रास्ते को समतल करना है असली हल !!

Monday, January 19, 2009

सेज सजी है ,

राह खड़ी है

चलते जाना .....

तन कंपता है,

मन डिगता है

चलते जाना ....

जलन धूप में ,

ठिठुरन काफ़ी

चलते जाना .....

शंकाजाल हैं ,

प्रश्न हैं भारी

चलते जाना ....

साथ न कोई ,

पर सच है साथी

चलते जाना .....

Saturday, January 17, 2009

बालकनी से दिखता


वो सामने वाला पेड़


हर पल है उस पर आवा-जाही !


सूरज की पहली किरण के साथ ही


अलग-अलग सुरों की सरगम -


कभी कूके कोयल


तो कभी कौवे की कांव-कांव


गिलहरियाँ धमा-चौकड़ी मचाती हैं


एक डाल से दूसरी पर !!


मुसाफिर पंछी


करते हैं कुछ पल विश्राम


और जिनका है बसेरा यहाँ


वो देखा करते हैं ये तमाशा बेपरवाह -


रोज़ की ही तो बात है !!!!

Monday, January 12, 2009

रात ने फैलाई

अपनी नर्म मुलायम लोई ,

उसकी सुकून भरी ओढ़नी के आगोश में हैं सब आमंत्रित !

जो रात काटनी हो मुश्किल

तो है चाँद साथी ,

वरना है एक सितारा

ज्यों डूबते को तिनके का सहारा !!!

सांझ उतरती आ गई आँगन में

झनकाती अपनी तारों भरी पाजेब

इतनी सांवली सलोनी और दमकती

कि दिए जल उठे कोने-कोने में

उसके स्वागत के लिए !!

Sunday, January 11, 2009

पहाडों की दुपहर

और धूप के संग

वो लुका-छिपी का खेल !

मेरे पीछे आने पर

एक पहाड़ से दूसरे पर तेज़ी से दौड़ जाना

पेड़ों की टहनियों में से झांकना

पर हाथ न आना

और हवा में तैरते हुए

रोम-रोम में गर्माहट भर जाना !!

Friday, January 9, 2009

भोर का ठंडा शांत प्रहर -

समय का स्पंदन रुक गया हो जैसे

पर आकाश देता है पल-पल रंग बदल कर गवाही

कि समय है गतिमान हमेशा !

जाती हुई रात और आता हुआ सवेरा -

है कुदरत का सबसे सुंदर कैनवास !

कुहासे की उस हलकी सी पर्त को

अपने में समा लेता है प्रभात

और ओस जड़े फूलों को जगाता है

अपने गर्माहट भरे स्पर्श से सूरज

यह अनूठा बदलाव चित्त को कर देता है शांत

और मन को भर देता है एक सुखद अनुभूति से !!!