सुबह-सुबह
सूरज की रौशनी से
कमरे के मटमैले पर्दे भी हो उठे जीवंत !!
चमकने लगे धूल के कण
कमरे में तैरते हुए -
गति में स्थिरता का एहसास दिलाते हुए !!!
मैंने बढ़ाये अपने हाथ
ओर सुनहरी ज़िन्दगी ने मुझे ले लिया
अपने आगोश में !!!!
मन है ज्यों
लबालब नदी ,
जीवन की ऊष्मा से तरल ,
झिलमिल करती आशा से !!
मन है ज्यों
मेघ आच्छादित आकाश,
उमड़- घुमड़ कर बरसाने को आतुर ,
नेह भरी बूँदें !!
मन है ज्यों
रंग-बिरंगी तितलियाँ ,
सुन्दर हैं क्षणिक ,
पर शाश्वत हैं उल्लासित !!
मन है ज्यों
अनछुए श्वेत बादल ,
अंतहीन व्योम में तैरते,
सब बेड़ियों से पार !!
मन है ज्यों
तारों भरी रात में ,
लुका-छिपी खेलते सपने,
लम्बी छलांगें लगाते ,
एक से दूसरे सितारे पर !!