दिन में लिखती हूँ चाँद के बारे में,
रात में सोचूँ सूरज !!
जो मिला उसे अल्टा-पल्टा के देखना है
खासतौर से ज़िन्दगी !!!
परतें खुलती जा रहीं हैं
और मैं रुकना चाह नहीं रही हूँ !
लो ,
फिर निकल आया चाँद अपने ठिकाने से !
और चल पड़ा है अलमस्त
अपने साथी सितारों की टोली के साथ
अब कौन समझाए इसे
इतनी रात गए घूमना अच्छी बात नहीं
और बेशर्मों की तरह
किसी की भी खिड़की से तांक-झाँक करना -
अरे, कुछ समझो भी !!
वो सितारा
सामने टंगा
अंधेरे में कुछ ज़्यादा ही टिमटिमाता हुआ,
सिखाता है ज़िन्दगी में
अपना दम पकड़े रहना !