Saturday, November 29, 2008

दिन में लिखती हूँ चाँद के बारे में,

रात में सोचूँ सूरज !!

जो मिला उसे अल्टा-पल्टा के देखना है

खासतौर से ज़िन्दगी !!!

परतें खुलती जा रहीं हैं

और मैं रुकना चाह नहीं रही हूँ !

लो ,

फिर निकल आया चाँद अपने ठिकाने से !

और चल पड़ा है अलमस्त

अपने साथी सितारों की टोली के साथ

अब कौन समझाए इसे

इतनी रात गए घूमना अच्छी बात नहीं

और बेशर्मों की तरह

किसी की भी खिड़की से तांक-झाँक करना -

अरे, कुछ समझो भी !!

Thursday, November 27, 2008

शब्द -
कहीं तैरते,
कहीं बहते तो कहीं उड़ते,
कहीं अलसाये से पड़े
लुका - छिपी के खेल में माहिर
ढूँढने पे मुश्किल से मिलते !

आकर चुपके से बैठ जाते हैं गोदी में ,
आँखे मूंदती हूँ जैसे ही मैं
और मचलते हुए रंग भर देते हैं
मेरी लेखनी में !!

Monday, November 24, 2008

वो सितारा

सामने टंगा

अंधेरे में कुछ ज़्यादा ही टिमटिमाता हुआ,

सिखाता है ज़िन्दगी में

अपना दम पकड़े रहना !