साँस घुट के रह गई
सोच के भार तले ,
कहाँ के लिये निकले थे
घुमावों कि भटकन ले आई कहाँ !!
शब्द अटक गये हैं
जैसे मकड़ जाल में
कुछ ने दम तोड़ दिया...छटपटाते !
और कुछ सरक गये हाथ से
रेत की तरह !
साफ़ नीला आसमान,
सफ़ेद बादलों के चाँदी वर्क में लिपटा
धूप छन के आती जिनसे,
गर्माहट देती गीली मिट्टी को
और मुलायम छुवन से
उठा देती है हर गीले पौधे का सिर -
जो पूरे दिन और रात की पुरज़ोर बारिश से
सहम कर सिमट गया था अपने में !
यूँ लगा मुझे
ज्यों हर पौधा धुल कर चमका
फिर ख़ुशी में लहका !!!