Saturday, October 29, 2022

साँस घुट के रह गई

सोच के भार तले ,

कहाँ के लिये निकले थे

घुमावों कि भटकन ले आई कहाँ !!


शब्द अटक गये हैं

जैसे मकड़ जाल में

कुछ ने दम तोड़ दिया...छटपटाते !

और कुछ सरक गये हाथ से 

रेत की तरह !

पुरवाई

पगडंडियों के किनारे चलती हुई

सँभल -सँभल कर !


अभी - अभी ही तो

चमकती नदी पर

बहती आई है .....


मंदिर की घंटियों के बाद

बगिया के फूलों को जगाती

फिर तितलियों के साथ

पकड़म - पकड़ाई खेलती !!


दोपहर की धूप में

ज़रा ठहर लेगी किसी पेड़ तले,

साँझ की ठंडक सबको पहुँचा कर,

फिर रात काटेगी -

चाँद को ताकते

किसी टीले पर से !!

कुछ खिले

कुछ अधखिले,  


कभी प्यार के इज़हार में 

कभी गले के हार में,


कहीं खूब सजे दुनिया को दिखाने में 

कहीं छुप के रहे पन्नों में ज़माने से,


रहे हमेशा सब देवों के पसंदीदा 

और अंत समय में भी चल दिये साथ,


इनके ये चार दिन 

         हैं हर भाव से

              संपूर्ण !

 चल निकली है पुरवाई 

लांघती-टापती

ऊँची नीची छतें ......


कुछ देर रुकेगी

उस टीले पर -जब थकेगी !


तब आँखों में भरके रख लूँगी 

कभी-कभार 

बातचीत करने के लिये !!!

 ढलती साँझ 

बिखराती चली है 

अनेक ख़ुशनुमा रंग,

पूरा दिन उसका

बहुत सुहाना बीता हो जैसे ।


भर के मस्ती की है 

बादलों के साथ 

लुका-छिपी में .....


चल दी है उस राह,

जहां रात इंतज़ार में होगी 


कल का दिन भी तो है 

फिर से.......


 सुबह सवेरे 

उतर आए हैं कुछ बादल 

मेरे आँगन,

साथ लेकर 

सिलसिलेवार बूँदे ।

हल्की-हल्की हवा भी है साथ 

शर्माती सी।

खिड़की से ही

कुछ हाल-चाल लिया 

हमने एक दूसरे का ।

        

मेरा सफ़र 

बहुत आँख मली
पानी से धोई भी बहुत
पर फ्यूज़ हो गया
बल्ब एक -
लपझप करते एक दिन !


शब्दों की क़तार
सहानुभूति जताने का
मक़सद कहके.....

अबूझ रही  
सक्षम लोगों के समक्ष भी 
बस कुछ मलहम और दवा के
फाहों से बना अस्थाई काम ।

दुबारा दस्तक दी 
उसी अस्वस्थता ने
और वही बल्ब फयूज़ हो गया
फिर से !!

शुरु हुई वहाँ से
एक लंबी क़वायद
घर से हॉस्पिटल
और हॉस्पिटल से घर की ......
इन गुज़रते सालों में नौ हमले - 
हर हमला जैसे
एक ग़ुस्सैल झुंड, 
जिसने अस्थिर कर दिये
घर के स्तंभ !!!

मरम्मत आसान न थी
पर कराई हर बार ।

छूट गये फिर भी
कुछ दरारों के निशान .....
जंग का कुछ हर्ज़ाना
तो भरना पड़ता है न ।

अंधेरी सुरंग में
रौशनी दिखी कुछ शब्दों से
इन शब्दों ने मिलवाया ,
एक मार्गदर्शक से 
जिसने दिखाया रास्ता ....
उस गढ्ढे से बाहर आने का
और सिखाया
जीने का स्वस्थ तरीक़ा :)

जंग जारी रहेगी -
बदल गया है
बस उससे जूझने का तरीक़ा
जो है बेहद कारगर !!

आज शक्ति और दम है मुझमें ...
पूर्ण विश्वास भी
कि मैं अब
ख़ैरियत से हूँ !!

Monday, July 4, 2022

 बादलों की छत तले

बूँदों की ओढ़नी 

और फुहारों का बिछौना ।

पुरवाईयों के पंखे

सर-सर, फ़र-फ़र .....

तपिश बह चली है 

बहते पानी के साथ,

रग-रग में भरती जा रही है 

ठंडक और सुकून ।

सराबोर हुआ जा रहा है मन

प्रकृति की इस प्यार भरी छुवन से ।

 ढाँप लेते हैं बादल मुझे 

हिफ़ाज़त से -

एक संरक्षक की तरह,

उनमें बहती जा रही हूँ मैं 

क्षितिज के उस ओर,

धुलते जा रहे हैं सब ओर-छोर

देते हैं तपते मन को ठंडक - 

उन्हीं से बाँट लेती हूँ 

आँखों से बरसते मन के उदगार ।


Saturday, May 28, 2022

बारिश के बाद

 साफ़ नीला आसमान,

सफ़ेद बादलों के चाँदी वर्क में लिपटा 

धूप छन के आती जिनसे, 

गर्माहट देती गीली मिट्टी को

और मुलायम छुवन से 

उठा देती है हर गीले पौधे का सिर -

जो पूरे दिन और रात की पुरज़ोर बारिश से 

सहम कर सिमट गया था अपने में !

यूँ लगा मुझे 

ज्यों हर पौधा  धुल कर चमका 

फिर ख़ुशी में लहका !!!