Thursday, April 23, 2009

दिन उठा और निकल पड़ा अपने रास्ते

हमराही कोई हो या नहीं !

कलियाँ खिल गयीं और झूम गई डाली

जलतरंग बजी हो या नहीं !

सांझ उतरती आ गई आँगन में

दीये जलाये हों या नहीं !

रात ने फैलाई अपनी तारों भरी लोई

सुकून भरी नींद हम ओढ़ पाए हों या नहीं !

हर पल है आस और हर साँस है सुकून

हम महसूस कर पाए हों या नहीं !

Wednesday, April 15, 2009

कल रात ,

चाँद अकेला टहल रहा था आसमान में

कुछ धूमिल और अनमना सा

छितरे-बिखरे कुछ बादलों के पीछे

बार-बार झाँक कर देखता

पूछा तो बोला -

ढूंढते-ढूंढते थक गया हूँ

अपने दोस्तों-यारों ,

साथी सितारों को

बहुत चिढ़ाते हैं मुझे कभी-कभी ये सब मिलके !!

Saturday, April 4, 2009

दुधवा के जंगलों में

पेड़ों में से छन के आती सुबह की धूप

और वहीं खड़ा एक चित्तीदार हिरण

सुनहरी आभा हिरण से धूप को जाती

या धूप से हिरण में समाती ???

निश्चल खड़ी -

आंखों से दिमाग की कटोरी में उड़ेल रही हूँ

अपने प्राणों की तरावट का यह अमृत -पान !

कौंध जाता है बस एक ख़्याल

सीता ने क्या यही हिरण देखा था ?