कल रात चाँद दिखा था
छुप के झांक रह था
वो मेरी खिड़की से
ज़रा सा मुस्कुरा क्या दिया
धीरे से सरक के आ गया वो
मेरे बिस्तर के पायताने पे
रात भर फुसलाता रहा
कर के बातें वो फिलोसोफी की
सुबह कि आहट पाते ही
निकल गया वो फिर धीरे से
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