Thursday, May 14, 2009

उस प्यारे शरारती बचपन की यादें -

तैरते हुए बुलबुलों को पकड़ना ,

उँगली लगते ही फूट जाते थे जो !

फूँक से उड़ाना,

वो बुढ़िया के बाल !

बहुत सारे दोस्तों के साथ ,

बहुत सारा खेलना !

फ़िर रात क्यों हो गई ?

बहुत गुस्सा आना !!

कितना आसान था

कट्टी और मिट्ठी कर लेना

नाराज़गी अरसे तक बोझ बनकर नहीं रहती थी ,

भूल जाने में न कोई तकलीफ

ना ही सच बोलने में कोई प्रयास !

Sunday, May 10, 2009

कल रात आंखें मूंदते ही

चल पड़ी मैं अनजान रास्तों पर -

बहते-उड़ते ,

कभी घुप्प अंधेरों में ;

तो कभी चमकदार रौशनी में !

मिलते-मिलाते ,

साथ छोड़ चुके लोगों से

और पूरा करते वो सब काम ,

जो दिन में छूट गए !!

कब भोर ने मुझे थपथपाया

पता ही नहीं चला !!!!

Thursday, May 7, 2009

तुम्हारे चंद शब्द -

अचानक बरसीं ये नन्ही-नन्ही बूँदें !

ठंडक भर गई अंतर में !!

कोयल की कूक सी भली लगती,

दूरी को पाटती,

तुम्हारी आवाज़ की मुस्कान!

मेरे दोस्त,

ज्यों सामने खड़े हो तुम-

गले लगाने को जी चाहा !!!