उस प्यारे शरारती बचपन की यादें -
तैरते हुए बुलबुलों को पकड़ना ,
उँगली लगते ही फूट जाते थे जो !
फूँक से उड़ाना,
वो बुढ़िया के बाल !
बहुत सारे दोस्तों के साथ ,
बहुत सारा खेलना !
फ़िर रात क्यों हो गई ?
बहुत गुस्सा आना !!
कितना आसान था
कट्टी और मिट्ठी कर लेना
नाराज़गी अरसे तक बोझ बनकर नहीं रहती थी ,
भूल जाने में न कोई तकलीफ
ना ही सच बोलने में कोई प्रयास !