Saturday, December 29, 2007

रास्ते चल पड़े
घुमाव - भरे

कहीं तो हैं पेड़
हवा - भरे
और कहीं ठूंठ
सूखे - पड़े

कहीं झाड़
कांटे - भरे
और कहीं पहाड़
ऊंचे - खडे

कहीं रास्ते
फिसलन - भरे
और कहीं झरने
बहते पड़े

सफर अभी और है बाकी
मकाम अभी बहुत हैं पड़े

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