Tuesday, February 2, 2010

कल रात हौले से

ठंडी हवा लग गयी गले

बड़े करीबी दोस्त की तरह !!

उसके स्पर्श ने दी ठंडक

मेरी सुलगती चुभन को

बांहें फैलाए

चमकीली रेत से सफ़ेद बादल

कुछ दूर यूँ ही साथ चलने को कह रहे थे

मुझे हिचकता देख

चाँद आ बैठा सामने

उसकी मुस्कान.......

सारे तर्क धरे रह गए !!!!!

5 comments:

daanish said...

उसकी मुस्कान.......
सारे तर्क धरे रह गए !!!!!

नज़्म...
अपनी बात
खुद बयान कर रही है
और....
ठंडी हवा...बड़े क़रीबी दोस्त की तरह
बहुत ही ख़ूबसूरती से बाँधी गयी उपमा है
आपका लहजा सधा हुआ है
और बुनावट में
परिपक्वता झलक रही है

बधाई स्वीकारें .

दिगम्बर नासवा said...

लाजवाब ........ मौन कर दिया इस रचना ने .........

makrand said...

good it s impreesing keep it up

Vinay said...

बहुत सुन्दर कविता है

Unknown said...

aap agar shayar ya poet naheen ho to jaroor natural photographer ho, ek scene jo aapke dimaag me banta hai, usko khoobsoorti se samne lafzon ke canvas par bana deti ho.

Regards