कल रात चाँद दिखा था
छुप के झांक रह था
वो मेरी खिड़की से
ज़रा सा मुस्कुरा क्या दिया
धीरे से सरक के आ गया वो
मेरे बिस्तर के पायताने पे
रात भर फुसलाता रहा
कर के बातें वो फिलोसोफी की
सुबह कि आहट पाते ही
निकल गया वो फिर धीरे से
Saturday, December 29, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
bahut khoobsoorat personification.likhte jaiye .
dr.bhoopendra
Post a Comment