ओस की बूँदें -
ज्यों बेतरतीब बिखरे हों नायाब हीरे !
रत्न-जड़ित पेड़ पौधों से स्वागत करती है
प्रकृति हर नए दिन का -
अपनी पवित्र और स्वच्छ आभा बिखेरते हुए !
सबसे सुंदर फूल से लेकर ,
एक नन्हे त्रण तक
उसका श्रृंगार है पूर्ण !
है तो क्षणिक -
पर इससे बेशकीमती कुछ भी नहीं !!
5 comments:
nice one, vimmi
bahut achchhi kavita.
"है तो क्षणिक, पर इस से बेशकीमती
कुछ भी नही .........."
सच कहा आपने , प्रकृति हर पल, हर जगह , अपने आप में
कुछ न कुछ अनुपम लिए हुए है .....
आपकी कविता पढने वाले को प्राकृतिक सौंदर्य के समीप ले जाने में सक्षम है ; बधाई !
आपकी आमद का शुक्रिया . . . . .
---मुफलिस---
waah!kya baat hai.bahut sundar rachna.
aapki is kavita ko padhkar mai apne aapko prakriti aur koobsurti ke bahut kareeb paaya....achha likha hai aapne
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