बचपन का भोलापन भी बेहद प्यारा है -
लगा था चलना सीख लिया ,
पर वो तो गिर कर खड़े होने का अभ्यास भर था !!!
तो लो,
फिर से उठी और चल पड़ी मैं :)
थपेड़े तो लगेंगे ही और गिरना भी तय है -
रास्ते हैं ही इतने उबड़ - खाबड़ और घुमावदार !!
पर उस मालिक की महर से
हरे - भरे पेड़ फैला देते मुझ पर ठंडी छाँव ,
अपनी आवाज़ से ज़िन्दगी में मिठास घोलते पंछी
और रंग बिखेरते फूल !!
रोज़ सुबह एक नए दिन की शुरुआत
और सामने वो अभी ख़त्म न हुआ रास्ता ,
फिर से उठ कर चलने की हिम्मत देता है !!!
5 comments:
विमी जी,
एक उम्मीद बंधाती हुई कविता, अच्छी लगी खासकर जब नैराश्य के अंधेरों में घिर रहे हैं हम तब कोई सीख देता है नई सुबह के साथ, सामने ना खत्म होने वाला रास्ता भी है।
उठो, नई शुरूआत करो।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
देखा लाइट गयी बही शाम को
बड़ी देर करदी मेहरबां आते आते ,
खैर देर आयद दुरुस्त आयद|
वही पुराने तेवर जिंदगी को हर हल में भरपूर जोश से जीने ,का पक्का इरादा
अच्छा लगा
मैं आज दोपहर भी आया था ,'' रूप बदल कर '' पर तुंरत लाइट कटौती का समय हो गया ,बता कर वापस चला गया लाइट आते ही आया हूँ |
नयी umeed का दिया jalaati, प्रेरणा देती लाजवाब रचना है
it's amazing
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