बादलों की छत तले
बूँदों की ओढ़नी
और फुहारों का बिछौना ।
पुरवाईयों के पंखे
सर-सर, फ़र-फ़र .....
तपिश बह चली है
बहते पानी के साथ,
रग-रग में भरती जा रही है
ठंडक और सुकून ।
सराबोर हुआ जा रहा है मन
प्रकृति की इस प्यार भरी छुवन से ।
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