ढाँप लेते हैं बादल मुझे
हिफ़ाज़त से -
एक संरक्षक की तरह,
उनमें बहती जा रही हूँ मैं
क्षितिज के उस ओर,
धुलते जा रहे हैं सब ओर-छोर
देते हैं तपते मन को ठंडक -
उन्हीं से बाँट लेती हूँ
आँखों से बरसते मन के उदगार ।
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