Monday, July 4, 2022

 ढाँप लेते हैं बादल मुझे 

हिफ़ाज़त से -

एक संरक्षक की तरह,

उनमें बहती जा रही हूँ मैं 

क्षितिज के उस ओर,

धुलते जा रहे हैं सब ओर-छोर

देते हैं तपते मन को ठंडक - 

उन्हीं से बाँट लेती हूँ 

आँखों से बरसते मन के उदगार ।


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