Tuesday, March 17, 2009

पहाड़ों की रात -

आसमान के तारे कुछ ज़्यादा ही बड़े और करीब दिखते

और चाँद कुछ ज्यादा ही दूध-मलाई खा के आया लगता !

ढलानों पर बने मकानों में झिलमिलाती रौशनी

जैसे चारों तरफ़ विशालकाय

क्रिसमस के चमकदार पेड़ सजे हों !

रात में घाटी का सौन्दर्य

किसी परी-कथा के जादू को

सजीव कर देता है !!

5 comments:

हरकीरत ' हीर' said...

sabdon ka sunder chyan...!!

अभिन्न said...

घाटी के सौन्दर्य का अनुपम चित्रण .रचना पढ़ कर लगा की आप एक सशक्त लेखनी की मलिका है एक छोटी सी लेकिन प्रभावी रचना पढ़ कर लगा की जैसे साक्षात् पहाडों के दर्शन हो गए हों वो भी रात में
बधाई उत्कृष्ट लेखन के लिए

मुकेश कुमार तिवारी said...

विमी जी,

सुन्दर रचना पहाड़ों को सजीव कर देती है और यही लेखनी की सफलता है. ऐसा लगता है कि चाँद पूरी के लिये शयनकक्ष में उतर आया हो.

बहुत बधाईयाँ.

मुकेश कुमार तिवारी

Writer-Director said...

Aaj aur abhi aapki sabhi likhtyen parhke hata hoon...man madhosh ho giya hai...yeh sab kya hai, kavita,painting,photography,pani ke bheetar se churyi seepon ke anekaan ghar...badlon ki peran pehnta koi panchi ya phir pani mein aag ka nrit dekhta kkoi rangkarmi....esi shiddat ko salaam...Darshan Darvesh

daanish said...

inn khoobsurat vaadiyoN meiN
apne sath-sath hameiN bhi le jane
ke liye aapka aabhaar !!
achhi rachnaa...badhaaee.

---MUFLIS---