Sunday, May 10, 2009

कल रात आंखें मूंदते ही

चल पड़ी मैं अनजान रास्तों पर -

बहते-उड़ते ,

कभी घुप्प अंधेरों में ;

तो कभी चमकदार रौशनी में !

मिलते-मिलाते ,

साथ छोड़ चुके लोगों से

और पूरा करते वो सब काम ,

जो दिन में छूट गए !!

कब भोर ने मुझे थपथपाया

पता ही नहीं चला !!!!

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