कल रात आंखें मूंदते ही
चल पड़ी मैं अनजान रास्तों पर -
बहते-उड़ते ,
कभी घुप्प अंधेरों में ;
तो कभी चमकदार रौशनी में !
मिलते-मिलाते ,
साथ छोड़ चुके लोगों से
और पूरा करते वो सब काम ,
जो दिन में छूट गए !!
कब भोर ने मुझे थपथपाया
पता ही नहीं चला !!!!
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