Tuesday, June 23, 2009


शाम को छत पर पहुँची


तो देखा -


वो मस्तमौला चितेरा


इन्द्रधनुष को आधा-अधूरा छोड़ कर


जाने कहाँ चला गया था !!


कोयल बेतहाशा कूके जाए उसे बुलाने को


पंछियों के झुंड ढूंढें इधर से उधर !!


मैंने भी देखा चारों ओर -


पर वो दूर ढलते सूरज के साथ जा चुका था


सबकी पंहुच से बाहर -


आख़िर है तो वो मालिक !!!!


8 comments:

Asha Joglekar said...

मालिक पर क्या जोर ?

daanish said...

aakhir,, hai to wo maalik . . .
maalik...apni marzi ka . . .
khud hi kuchh poochhtee-bataatee-si
ek achhi rachnaa .
badhaaee .

---MUFLIS---

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

एक चितेरा कभी मुझे भी मिला था बचपन में मैंने उससे पूछा भी था ,लेमन - चूस खाओगे , तब चाकलेट नहीं मिलते थे यही मिलता था , पर मुझे ऐसे ऐसे दो पुल बना कर दे दो .
पूछा गया - क्या करोगे
उत्तर -भगवन से मिलाने जाउगा
प्रश्न - क्यों ?
कहूँगा सदगुर दद्दा को वापस भेजो
दो क्यों
एक जाने एक वापस आने के लिए


क्या आप के ब्लॉग पर समर्थक या अनुसरण करता विजेट नहीं है ?

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

विमी जी कबीरा पर इन्द्रधनुषी पुल तैयार है


" इन्द्रधनुषी पुल "

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

आप कहाँ है,?
बहुत अंतराल हुआ है ??,
स्वस्थ तो हैं ?

दिगम्बर नासवा said...

lajawaab shabdon ka sanyojan hai aapki rachna mein...... bhaav jab maadhyam banaa kar bahar nikalte hain to sundar kriti ka janm hotaa hai..... aur aapki rachnaa bhi unme se ek hai....

M VERMA said...

वो मस्तमौला चितेरा
इन्द्रधनुष को आधा-अधूरा छोड़ कर
जाने कहाँ चला गया था !!
बेहतरीन रचना

Vinay said...

finest work...