शाम को छत पर पहुँची
तो देखा -
वो मस्तमौला चितेरा
इन्द्रधनुष को आधा-अधूरा छोड़ कर
जाने कहाँ चला गया था !!
कोयल बेतहाशा कूके जाए उसे बुलाने को
पंछियों के झुंड ढूंढें इधर से उधर !!
मैंने भी देखा चारों ओर -
पर वो दूर ढलते सूरज के साथ जा चुका था
सबकी पंहुच से बाहर -
आख़िर है तो वो मालिक !!!!
8 comments:
मालिक पर क्या जोर ?
aakhir,, hai to wo maalik . . .
maalik...apni marzi ka . . .
khud hi kuchh poochhtee-bataatee-si
ek achhi rachnaa .
badhaaee .
---MUFLIS---
एक चितेरा कभी मुझे भी मिला था बचपन में मैंने उससे पूछा भी था ,लेमन - चूस खाओगे , तब चाकलेट नहीं मिलते थे यही मिलता था , पर मुझे ऐसे ऐसे दो पुल बना कर दे दो .
पूछा गया - क्या करोगे
उत्तर -भगवन से मिलाने जाउगा
प्रश्न - क्यों ?
कहूँगा सदगुर दद्दा को वापस भेजो
दो क्यों
एक जाने एक वापस आने के लिए
क्या आप के ब्लॉग पर समर्थक या अनुसरण करता विजेट नहीं है ?
विमी जी कबीरा पर इन्द्रधनुषी पुल तैयार है
" इन्द्रधनुषी पुल "
आप कहाँ है,?
बहुत अंतराल हुआ है ??,
स्वस्थ तो हैं ?
lajawaab shabdon ka sanyojan hai aapki rachna mein...... bhaav jab maadhyam banaa kar bahar nikalte hain to sundar kriti ka janm hotaa hai..... aur aapki rachnaa bhi unme se ek hai....
वो मस्तमौला चितेरा
इन्द्रधनुष को आधा-अधूरा छोड़ कर
जाने कहाँ चला गया था !!
बेहतरीन रचना
finest work...
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