बह चले पत्ते ,
उड़ चला मन -
कहीं भी, कैसे भी !!
घिरती आ रही बदली
भरती जा रही अन्तर में ,
गीली मिट्टी का सोंधा एहसास -
जैसे प्यार की छुअन पोर-पोर में !!
मदमस्त झोंकों से लहराते पेड़ ,
कोयल की कूक से गूंजता आसमान !!
चित्त हो गया पंख सा हल्का ,
जो भर ली अपने अन्दर
ऐसी सुखद शाम !!!!
2 comments:
विमी जी बहुत ही अच्छी कविता लिखी है आपने!
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राम सेतु – मानव निर्मित या प्राकृतिक?
ANJAANE SE PREM KI MUKHAR ABHIVYAKTI.... PAAGAL MAN KI UJWAL ABHIVYAKTI HAI AAPKI RACHNA.... SUNDAR
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