Thursday, August 27, 2009

पाषाण टूटे ,

झरने फूटे

हो गया मन तरल !

सूखी क्यारियाँ ,

भर गयीं फूलों से

खुशबू और रंगों की है चहल-पहल !

पथरीले रास्तों पे ,

उग आई है मुलायम दूब

ज़िन्दगी ने की है पहल !

सवालों को नहीं रही ,

जवाबों की तलब

नए आयाम में आई हूँ मैं टहल !

4 comments:

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

इस माह तो रिकार्ड टूट गया ,एक माह तीन -तीन रचनाये ? कहाँ से ये जोश मिला ? माना मनमुटाव पर्सनल होते हैं ,पूछता नहीं बता रहा हूँ .....
जैसे प्यार की छुअन पोर-पोर में !!
.....................
.....................
......................
चित्त हो गया पंख सा हल्का ,

जो भर ली अपने अन्दर

ऐसी सुखद शाम !!!!

लगता है
सारे गिले मिट गए ,
जो घिरे बदल प्यार के ,
खूब बरसा ऐसा फुहार,
जो घोले था रस मनुहार के ,
टूटे पाषाण तकरार के ,
फूटे झरने प्यार के
लगा द्वार खोल दिए
सृष्टि ने चौथे आयाम के |
बधाई . तीनो रचनाएँ अच्छी लगीं

daanish said...

ज़िन्दगी ने की है पहल !
और
नए आयाम में आई हूँ मैं टहल !

वाह !
एक खुशनुमा तहरीर .....
खूबसूरत ख़याल ........
और उम्दा नज़्म .
---मुफलिस---

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

सन्देश मिला धन्यवाद

दिगम्बर नासवा said...

वाह ......... कितनी सुखद अभिव्यक्ति है ........... मन के तार हिला गयी ............ सुन्दर रचना