Saturday, September 5, 2009

दिन ने खोली,

अपनी झोली -

लगा बाँटने बेरोकटोक !!

भर-भर बांटे

रौशन कोने ,

चमचमाते छत- गलियारे

और दमकते घर-चौबारे !!!

दिए चिड़ियों को ,

सिंके हुए दाने

और तितलियों को

फूल खोल के !!!!

दे दिया आगाज़ मुझे

और भर दिया मुझमे दम-ख़म;

रख कर सर पर

स्नेह की गर्माहट भरा हाथ !!!

4 comments:

Vinay said...

विमि जी बहुत सुन्दर काविता लिखी है, बधाई

दिगम्बर नासवा said...

BHOR KI KIRNON KI TAAZGI NIRMAAN KA EHSAAS BIKHERTI HAI .... KHUSHIYON KA SANCHAAR KARTI HAI ........ AASHAA KA SANCHAAR KARTE UVE SUNDAR SHABDON MEIN PIROYA HAI AAPNE IS RACNA KO .....

Atmaram Sharma said...

ज़िंदगी की गर्माहट शब्दों से उतरकर हृदय में महसूस होती है. बहुत बढ़िया. बहुत सुंदर. लिखते रहिये.

महेंद्र मिश्र said...

OOOOOOOOOOOOOOOH!

एक कैनवस है, उस पर बहुत सहज ढंग से, बडे़ सुन्दर रंग बिखेरें हैं आपने....ऒर फ़िर अन्त में इस खूबसूरत चित्र पर जो हस्ताक्षर किये हैण आपने, उसका कोई जवाब नहीं......