Saturday, November 29, 2008

दिन में लिखती हूँ चाँद के बारे में,

रात में सोचूँ सूरज !!

जो मिला उसे अल्टा-पल्टा के देखना है

खासतौर से ज़िन्दगी !!!

परतें खुलती जा रहीं हैं

और मैं रुकना चाह नहीं रही हूँ !

4 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

sahi hai, jo hamare pass nahi hota ham uske baare me hee sochate hain. narayan narayan

परमजीत सिहँ बाली said...

सही है।यही तो जीवन है।
हम तो रूक सकते हैं पर समय कहाँ रूकता है।

Himanshu Pandey said...

देखना ही पङता है. जिंदगी के कई गोपन रहस्य तो अंत तक अनखुले ही रह जाते हैं. अच्छा लिखा .

Dev said...

jivan ke anjane path ki rahe aisi hi hai.....
aur samay chalta hi rahata hai...

BAdhai