चल रही थी मैं
मसूरी की घुमावदार सड़क पर ,
नीचे उतर आए
हल्के-फुल्के बादल मेरा साथ देने ,
हल्की सी ठंड ने लपेट लिया मुझे
और फिर जब तैर गए ऊपर वो सब
तो प्यार भरी फुहार
से भिगो गए तन-मन को ,
रोमांचित और पुलकित कर गया मुझे
इतना बेझिझक प्यार और अपनेपन का इज़हार !
5 comments:
फ़िज़ा को बहुत सुन्दर कविता बना दिया आपने!
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चाँद, बादल और शाम
"पुलकित कर गया मुझे इतना बे-जिझाक प्यार ..."
मन की सुकोमल भावनाओं
और प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा और अनुपम संगम आप की कविता में ब- khoobi
jhalak रहा है .............
एक बहुत achhi rachna के लिye badhaaee svikaarein .
---MUFLIS---
mousam ka varnan shandar tarike se kiya . narayan narayan
बेहतरीन रचना lagi आपकी. बस ज़ज्बा बरकरार रखें. बधाई.
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