Monday, January 19, 2009

सेज सजी है ,

राह खड़ी है

चलते जाना .....

तन कंपता है,

मन डिगता है

चलते जाना ....

जलन धूप में ,

ठिठुरन काफ़ी

चलते जाना .....

शंकाजाल हैं ,

प्रश्न हैं भारी

चलते जाना ....

साथ न कोई ,

पर सच है साथी

चलते जाना .....

3 comments:

Vinay said...

बहुत अनूठी और बेहतरीन रचना

---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम

Anonymous said...

कम शब्दों में रची गई अनूठी कविता

rajesh singh kshatri said...

तन कंपता है,

मन डिगता है

चलते जाना ....

जलन धूप में ,

ठिठुरन काफ़ी

चलते जाना .....

bajut sundar