Saturday, October 29, 2022

साँस घुट के रह गई

सोच के भार तले ,

कहाँ के लिये निकले थे

घुमावों कि भटकन ले आई कहाँ !!


शब्द अटक गये हैं

जैसे मकड़ जाल में

कुछ ने दम तोड़ दिया...छटपटाते !

और कुछ सरक गये हाथ से 

रेत की तरह !

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