साँस घुट के रह गई
सोच के भार तले ,
कहाँ के लिये निकले थे
घुमावों कि भटकन ले आई कहाँ !!
शब्द अटक गये हैं
जैसे मकड़ जाल में
कुछ ने दम तोड़ दिया...छटपटाते !
और कुछ सरक गये हाथ से
रेत की तरह !
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