पुरवाई
पगडंडियों के किनारे चलती हुई
सँभल -सँभल कर !
अभी - अभी ही तो
चमकती नदी पर
बहती आई है .....
मंदिर की घंटियों के बाद
बगिया के फूलों को जगाती
फिर तितलियों के साथ
पकड़म - पकड़ाई खेलती !!
दोपहर की धूप में
ज़रा ठहर लेगी किसी पेड़ तले,
साँझ की ठंडक सबको पहुँचा कर,
फिर रात काटेगी -
चाँद को ताकते
किसी टीले पर से !!
No comments:
Post a Comment