Saturday, October 29, 2022

पुरवाई

पगडंडियों के किनारे चलती हुई

सँभल -सँभल कर !


अभी - अभी ही तो

चमकती नदी पर

बहती आई है .....


मंदिर की घंटियों के बाद

बगिया के फूलों को जगाती

फिर तितलियों के साथ

पकड़म - पकड़ाई खेलती !!


दोपहर की धूप में

ज़रा ठहर लेगी किसी पेड़ तले,

साँझ की ठंडक सबको पहुँचा कर,

फिर रात काटेगी -

चाँद को ताकते

किसी टीले पर से !!

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