देश के नेताओं को समर्पित -
मेरे आसपास सिर्फ़ ठूंठ हैं !
इस जानलेवा मौसम में ,
जो जीवन निचोड़ ले रहा है,
चाहत है हरे-भरे वृक्ष की छाँव की,
बह के आती ठंडी बयार की ,
कुछ जीवन-दायिनी फलों की,
कुछ ताजगी देने वाले फूलों की,
पर मेरे आसपास सिर्फ़ ठूंठ हैं !!
3 comments:
ये अच्छी कविता है
बहुत बढिया रचना है।
विमी,
जानलेवा मौसम, वाह क्या बात है.एक अच्छी उपमा. क्या ठूंठ कभी हरा होगा? क्या फूट पड़ेगीं कोंपले फिर से बगैर ड़रे कुल्हाडियों से?
मुकेश कुमार तिवारी
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