Friday, December 5, 2008

मैंने माँगा

वक्त से आँचल

दे दो मुझको छाँव थोड़ी !!

धूप बहुत है

जलता मन है

ठंडे-ठंडे हर्फ़ मैं मांगू

दे दो कुछ बरसात थोड़ी !!

1 comment:

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

I am not understanding why ? ; each & every time your words inspir me!!!? Please don't mind htis is to you ......

मैंने वक्त से माँगी थोडी छाँव
उसके आँचल तले ,
ज़िन्दगी की रह गुज़र पर ,
जलते हैं तन और मन
हालात की धूप तेज है बहुत ,
इन ठंडे ठंडे हर्फ़ों मांगूं
दे दो थोड़ी बरसात रिम-झिम ,रिम-झिम ]