Thursday, December 18, 2008

हुई कुछ ऐसी बेमौसम बरसात ,

दिलों से रंग धुल गए !

लिखा था बड़े जतन से अफसाना,

सफों से हर्फ़ धुल गए !

बह गए जिस्म से जज़्बात ,

नज़रों से ग़म भी धुल गए !

इस बेमौसम बारिश का ज़ोर तो देखो ,

संग पर तराशे मेरे उनके नाम धुल गए !

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर रचना है। बधाई।

vijay kumar sappatti said...

kya khoob likha hai .

बह गए जिस्म से जज़्बात ,नज़रों से ग़म भी धुल गए !

wah .. bahut sundar aur bhaavpoorn rachna.

Pls visit my blog for new poems..

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/