कैसा मौसम, कैसा मौसम
देखा न कभी ऐसा मौसम !
जो पात हरे, ताज डार झरे
ज्यों स्वप्न जीवन की शाखों से !
कैसा मौसम.............
धानी चूनर भई पीत वरण
ज्यों म्लान दुखों की पांतों से !
कैसा मौसम..............
वीरान ठूंठ, सुख गए रूठ
ज्यों पिया मिलन की रातों से !
कैसा मौसम, कैसा मौसम
देखा न कभी ऐसा मौसम !
4 comments:
एक विचित्र अर्थ भाव संयोजन है इन पंक्तियों में-
"वीरान ठूंठ, सुख गए रूठ" . अर्थ के वैपरीत्य ने सच कहिये तो काव्याभिव्यन्जना का चमत्कार पैदा कर दिया है. धन्यवाद .
आप मेरे ब्लॉग पर आयीं, इसके लिए पुनः धन्यवाद.
कवितायें मिनिएचर अवश्य हैं पर लिखती आप बहुत प्यारी भावपूर्ण कवितायें ,थोडीसी लय लाने का प्रयत्न करें | कुछ मत करें कविता उद्भव के समय उसे गुनगुनाते हुए लिखने की कोशिश करे जिस शब्द पर गुनगुनाने में अटकें उस के स्थान पर उसी भाव का दूसरा शब्द ढूँढें जो गुनगुनाने का प्रवाह ना रोके , अगर कही पर न हो तो ज्यादा प्रयत्न न करे अपनी स्वाभाविक शैली में ही लिखें ,[देखियेगा कुछ दिनों में अपने आप ,नवगीत की विधा में आप पारंगत हो जाएँगी [ आप की भाव शैली बड़ी खूबसूरत है [
shabdo ke utar chadav ne kafi sundart di hai........
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