Tuesday, December 23, 2008

मुखौटों का मेला लगा है दिन-रात !

शोर-गुल भरे मेलों से

हटकर है ये

सन्नाटे भरा मेला


अपनी ही पहचान

खोने लगी है

मुखौटे बदलने की

इस कवायद में



ख़ुद को देखना चाहती हूँ मैं

पर आइने हटा दिए गए हैं

और कहा जा रहा है

मुझे इलाज की सख्त ज़रूरत है !!

1 comment:

daanish said...

nice write !
an exclusive analsys of
human psychology... !

"hr mukhaute ke tle
ek mukhauta niklaa,
ab to hr shkhs ke chehre hi pe chehra nikla ,
rng 'muflis' na zmaane ka
na duniyadaari,
log sb hanste haiN tujh pe
tu bhalaa kya nikla ."

gzl poori hai, lekin for sm reason beyond my control, i m unable to post/publish it ---MUFLIS---