ऊबड़-खाबड़ ये रास्ता -
मेरे दिल और दिमाग के बीच
गाड़ी चलते-चलते जवाब दे जाती है कभी-कभार !
चरमराने लगता है ढांचा
और झटके भरे हिचकोलों से दिमाग होने लगता है सुन्न !
मरम्मत के लिए अर्जी लगाती हूँ
इस गाड़ी के बनाने वाले को हर बार ,
पर ये समझ में आया है
कि सिर्फ़ गाड़ी की मरम्मत नहीं है काफ़ी ,
इस रास्ते को समतल करना है असली हल !!
6 comments:
मरम्मत के लिए अर्जी लगाती हूँ
इस गाड़ी के बनाने वाले को हर बार ,
पर ये समझ में आया है
कि सिर्फ़ गाड़ी की मरम्मत नहीं है काफ़ी ,
इस रास्ते को समतल करना है असली हल !!
bahut badia...
सच बहुत सुन्दरता के साथ मनोभाव प्रकट किये हैं आपने
---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
बहुत गहरे अर्थ हैं इन पंक्तियोंं के पीछे
sundar hai pasand aayi
"सिर्फ़ गाड़ी की मरम्मत नही है काफ़ी ,
इस रास्ते को समतल करना है ..."
जीवन-दर्शन को बहोत ही सादगी से समझाने की सफल कोशिश की है
इस सुंदर कविता के माध्यम से आपने ....
बड़ी ही सूझ-बूझ और गहरी विवेकशीलता से लिखी है आपने ये कविता
बधाई स्वीकार करें ............
---मुफलिस---
कि सिर्फ़ गाड़ी की मरम्मत नहीं है काफ़ी ,
इस रास्ते को समतल करना है असली हल !!
बहुत सुन्दर...
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