Friday, December 19, 2008

फिर आया हरियाला मौसम

हुए हैं दिल के घाव हरे ,

भीगे बोझिल इस मौसम में

आए हैं दिल के नीड़ पे -

यादों के मटमैले पंछी

बूंदा-बांदी से घबराकर !

और आवेगों के दरिया में

बह गए हैं आंखों से -

जो आए थे

बूंदा-बांदी से घबराकर !

बहुत सुखद है विस्मृति

जिसके लिए यह मौसम है -

सिर्फ़ बारिश !!

4 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर लिखा है-

यादों के मटमैले पंछी

बूंदा-बांदी से घबराकर !

और आवेगों के दरिया में

बह गए हैं आंखों से -

Unknown said...

Brilliant work !!!

Keep writing :)

Regards
-Naveen

Unknown said...

Thanks for note on 'Place I see from'. I have another blog as well : http://shoutsandcries.blogspot.com

Would love to share few things I wrote from soul...

Regards
N

daanish said...

"..aaye haiN dil ke neerh pe yaadoN ke mat.kaile panchhi..."
mun ke komal ehsaas aur mausam ki
khaamosh aahat ka bahot hi khoobsurat manzar hai aapki ye rachna...
badhaaee !
---MUFLIS---