फिर आया हरियाला मौसम
हुए हैं दिल के घाव हरे ,
भीगे बोझिल इस मौसम में
आए हैं दिल के नीड़ पे -
यादों के मटमैले पंछी
बूंदा-बांदी से घबराकर !
और आवेगों के दरिया में
बह गए हैं आंखों से -
जो आए थे
बूंदा-बांदी से घबराकर !
बहुत सुखद है विस्मृति
जिसके लिए यह मौसम है -
सिर्फ़ बारिश !!
4 comments:
बहुत सुन्दर लिखा है-
यादों के मटमैले पंछी
बूंदा-बांदी से घबराकर !
और आवेगों के दरिया में
बह गए हैं आंखों से -
Brilliant work !!!
Keep writing :)
Regards
-Naveen
Thanks for note on 'Place I see from'. I have another blog as well : http://shoutsandcries.blogspot.com
Would love to share few things I wrote from soul...
Regards
N
"..aaye haiN dil ke neerh pe yaadoN ke mat.kaile panchhi..."
mun ke komal ehsaas aur mausam ki
khaamosh aahat ka bahot hi khoobsurat manzar hai aapki ye rachna...
badhaaee !
---MUFLIS---
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