Monday, December 29, 2008

मौसम बदला, रंगत निखरी

चल पड़ी है मंद बयार !

कूके कोयल, दूर उस पेड़ पे

कहाँ से सीखी उसने ये तान !

बूँदें हलकी, इतनी हलकी

पहला-पहला स्पर्श हो ऐसे !

इन्द्रधनुष ने खोले पंख

मयूर नाच उठा हो मेरे आँगन में जैसे !

5 comments:

makrand said...

बूँदें हलकी, इतनी हलकी

पहला-पहला स्पर्श हो ऐसे !

इन्द्रधनुष ने खोले पंख

मयूर नाच उठा हो मेरे आँगन में जैसे

bahut sunder rachana

!!अक्षय-मन!! said...

वाह! दिल को छूती है आपकी ये रचना मन खिल उठता है इतने कोमल भावः से जो आपने इस रचना में डाले हैं बहुत ही अच्छा लिखा है......

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

बारिश का ऐसा मजा पहले कभी आया था, आज फिर से पुरानी जीन्स पहनी हुई मालूम हुई !

शुक्रिया, बहुत खूबसूरत अनुभूती के लिये....

daanish said...

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---MUFLIS---